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YouTube vs Tik Tok battle

समानता

YouTube और Tik Tok दोनों वीडियो मनोरंजन मंच हैं। दोनों ही उपयोगकर्ताओं को उत्पन्न सामग्री पर भरोसा करते हैं। दोनों प्लेटफार्म पर अच्छी वीडियो बनाए जाते हैं और दोनों ही प्लेटफार्म से क्रिएटर अच्छे खासे रुपए कमाते हैं।

विवाद

इंडिया के अंदर वर्तमान समय में करोना से अधिक प्रचलित टिकटोक वर्सेस युटुब है इसक आरमभ एलविश यादव द्वारा टिक टॉक राँस्ट वीडियो से होती है जिसमें उन्होंने काफी टिक  टॉक क्रिएटर को भला बुरा कहा है।




इस वीडियो को जवाब में एक मशहूर टिक टॉककर आमिर ने अपना एक स्टेटमेंट दिया जिसमें उन्होंने एल्विस यादव की ओर इशारा नहीं करते हुए सभी यूट्यूबरो को नीचा दिखाने की कोशिश की और अपमान जनक शब्दों का प्रयोग किया वह स्टेटमेंट उन्होंने काफी बड़े-बड़े यूट्यूबरो  को टैग किया।
इसके बाद एक मशहूर यूट्यूबर जिसका नाम है कैरीमिनाटी उसने एक वीडियो बनाया जिसका नाम उसने टिक टोक बनाम यूट्यूब: द एंड रखा।


यह वीडियो सोशल मीडिया पर इतना वायरल हुआ कि यह वीडियो मनोरंजन मंच पर सबसे कम समय में सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला वीडियो बन गया। इसे 6 दिन में 7 करोड़ से ज़्यादा बार देखा गया. इसका फायदा कैरी को भी खूब मिला. जब उन्होंने ये वीडियो अपने चैनल पर अपलोड किया, तब उनके सब्सक्राइबर्स की संख्या 10.6 मिलियन यानी 1 करोड़ 6 लाख के आसपास थी. लेकिन उस वीडियो के बाद उनके टोटल सब्सक्राइबर्स हो गए हैं 16.7 मिलियन यानी 1 करोड़ 67 लाख हालाँकि, कुछ दिनों के बाद वीडियो को YouTube से यह कहते हुए हटा दिया गया कि उसने YouTube के सामुदायिक दिशानिर्देशों के साथ विरोध किया है।

टिक टॉक का विरोध क्यों

टिकटोक का विरोध कुछ हद तक सही भी है इसमें समाज की कुछ कृतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिस से आने वाली भावी पीढ़ी तो बहुत बुरा नुकसान पहुंच सकता है अगर आप इसे देखोगे तो आपको मालूम होगा कि इसके अंदर रेप एसिड अटेक‌ प्रकृति को नुकसान जानवरों को नुकसान लड़कियों की इज्जत न करना ऐसी चीजों को बहुत जोर शोर से प्रमोट किया जा रहा है जिससे समाज में अशांति का माहौल उत्पन्न हो सकता हैं


टिक टॉक पर प्रभाव

 इस विवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव टिक टॉक पर दिखा है इस विवाद से पहले टिकटोक की गूगल प्ले स्टोर पर रेटिंग 4.5 की थी लेकिन वर्तमान में टिकटों की रेटिंग 1.6 तक आ चुकी है और सर इतने में क्या होने वाला था अभी तो इंडिया की जनता इंडिया में टिकटोक को परमानेंटली बैन करने के लिए जोर सोर से लगी हुई है आगे देखते हैं कि गूगल इंडिया में टिक टॉक को बेन करता है या नहीं करता है लेकिन यह साफ है कि इंडिया की 50% टिक टोक यूजर्स ने टिकटोक को बंद कर दिया है और टिक टॉक का विरोध कर रहे हैं

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जीवनी

ए.पी.जे. अब्दुल कलाम


इनहे मिसाइल मैन के नाम से भी जाना जाता है यह गणतंत्र भारत के 11वें निर्वाचित राष्ट्रपति थे लेकिन उससे पहले जाने-माने वैज्ञानिक और इंजीनियर के रूप में विख्यात थे उनका कहना था जीवन में चाहे जैसी भी परिस्थिति  क्यों ना हो पर जब आप अपने सपने को पूरे करने की ठान लेते हैं तो उन्हें पूरा करते ही हैं


प्रारंभिक जीवन 

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव धनुषकोड़ी मैं 15 अक्टूबर 1931 को एक मध्यवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ इनके पिता का नाम  जैनुलाब्दीन था अब्दुल कलाम के पिता नहीं तो पैसे वाले थे और नहीं पढ़े लिखे थे वह मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे परिवार के सदस्य की संख्या का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह खुद पांच भाई और उनकी पांच बहने थी और घर में 3 परिवार रहा करते थे अब्दुल कलाम अपने पिता को अपना रोल मॉडल मानते थे 
पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियो को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए। पांचवी कक्षा में पढ़ते समय उनके अध्यापक उन्हें पक्षी के उड़ने के तरीके की जानकारी दे रहे थे, लेकिन जब छात्रों को समझ नही आया तो अध्यापक उनको समुद्र तट ले गए जहाँ उड़ते हुए पक्षियों को दिखाकर अच्छे से समझाया, इन्ही पक्षियों को देखकर कलाम ने तय कर लिया कि उनको भविष्य में विमान विज्ञान में ही जाना है। कलाम के गणित के अध्यापक सुबह ट्यूशन लेते थे इसलिए वह सुबह 4 बजे गणित की ट्यूशन पढ़ने जाते थे।
अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था। कलाम ने 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये जहाँ उन्होंने सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी 3 के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था


वैज्ञानिक जीवन






1972 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़े। अब्दुल कलाम को परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल हुआ।  1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बना था । इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन कियाइन्होंने अग्नि एवं पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था। कलाम जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव थे। अब्दुल कलाम के सहयोग के कारण ही आज भारत परमाणु हथियार के निर्माण में सक्षम है। 


राजनैतिक जीवन

राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे तब इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन॰डी॰ए॰ घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया। 18 जुलाई 2002 को कलाम को 90 प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया था और इन्हें 25 जुलाई 2002 को संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे। इनका कार्याकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ

राष्ट्रपति दायित्व से मुक्ति के बाद


राष्ट्रपती कार्यालय छोड़नेके बाद, कलाम भारतीय प्रबन्धन संस्थान शिलोंगभारतीय प्रबन्धन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर और भारतीय विज्ञान संस्थान,बैंगलोर के मानद फैलो, आ एक विजिटिङग प्रोफेसर बनि गेलखिन।

निधन


27 जुलाई 2015 की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में 'रहने योग्य ग्रह' पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ और वे बेहोश हो कर गिर पड़े। लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई। अस्पताल के सीईओ जॉन साइलो ने बताया कि जब कलाम को अस्पताल लाया गया तब उनकी नब्ज और ब्लड प्रेशर साथ छोड़ चुके थे।


अंतिम संस्कार

मृत्यु के तुरंत बाद कलाम के शरीर को भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर से शिलांग से गुवाहाटी लाया गया। जहाँ से अगले दिन 28 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का पार्थि‍व शरीर मंगलवार दोपहर वायुसेना के विमान सी-130जे हरक्यूलिस से दिल्ली लाया गया। लगभग 12:15 पर विमान पालम हवाईअड्डे पर उतरा। सुरक्षा बलों ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ कलाम के पार्थिव शरीर को विमान से उतारा।वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल व तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने इसकी अगवानी की और कलाम के पार्थिव शरीर पर पुष्पहार अर्पित किये। इसके बाद तिरंगे में लिपटे कलाम के पार्थि‍व शरीर को पूरे सम्मान के साथ, एक गन कैरिज में रख उनके आवास 10 राजाजी मार्ग पर ले जाया गया। यहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधीराहुल गांधी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सहित अनेक गणमान्य लोगों ने इन्हें श्रद्धांजलि दी। भारत सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति के निधन के मौके पर उनके सम्मान के रूप में सात दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की।
29 जुलाई की सुबह वायुसेना के विमान सी-130जे से भारतीय ध्वज में लिपटे कलाम के शरीर को पालम एयर बेस पर ले जाया गया जहां से इसे मदुरै भेजा गया, विमान दोपहर तक मदुरै हवाई अड्डे पर पहुंचा। उनके शरीर को तीनों सेनाओं के प्रमुखों और राष्ट्रीय व राज्य के गणमान्य व्यक्तियों, कैबिनेट मंत्री मनोहर पर्रीकर, वेंकैया नायडू, पॉन राधाकृष्णन; और तमिलनाडु और मेघालय के राज्यपाल के॰ रोसैया और वी॰ षडमुखनाथन ने हवाई अड्डे पर प्राप्त किया। एक संक्षिप्त समारोह के बाद कलाम के शरीर को एक वायु सेना के हेलिकॉप्टर में मंडपम भेजा गया। मंडपम से कलाम के शरीर को उनके गृह नगर रामेश्वरम एक आर्मी ट्रक में भेजा गया। अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिए उनके शरीर को स्थानीय बस स्टेशन के सामने एक खुले क्षेत्र में प्रदर्शित किया गया ताकि जनता उन्हें आखिरी श्रद्धांजलि दे सके।
30 जुलाई 2015 को पूर्व राष्ट्रपति को पूरे सम्मान के साथ रामेश्वरम के पी करूम्बु ग्राउंड में दफ़ना दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी, तमिलनाडु के राज्यपाल और कर्नाटककेरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों सहित 3,50,000 से अधिक लोगों ने अंतिम संस्कार में भाग लिया।


किताबें

कलाम ने साहित्यिक रूप से भी अपने विचारों को चार पुस्तकों में समाहित किया है, जो इस प्रकार हैं: 'इण्डिया 2020 ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'। इन पुस्तकों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस प्रकार यह भारत के एक विशिष्ट वैज्ञानिक थे, जिन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हो चुकी थी।

सम्मान/पुरस्कार

सम्मान का वर्ष सम्मान/पुरस्कार का नाम                           प्रदाता संस्था
2014        डॉक्टर ऑफ़ साइन्स                      एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, यूनाइटेड किंगडम[
2012        डॉक्टर ऑफ़ लॉज़ (मानद उपाधि)      साइमन फ़्रेज़र विश्वविद्यालय
2011        आइ॰ई॰ई॰ई॰ मानद सदस्यता         आइ॰ई॰ई॰ई॰
2010       डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग             यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाटरलू[
2009       मानद डॉक्टरेट                             ऑकलैंड विश्वविद्यालय
2009      हूवर मेडल                                      ए॰एस॰एम॰ई॰ फाउण्डेशन, (सं॰रा॰अमे॰)
2009      वॉन कार्मन विंग्स अन्तर्राष्ट्रीय अवार्ड       कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी,       (सं॰रा॰अमे॰)
2008   डॉक्टर ऑफ इन्जीनियरिंग (मानद उपाधि) नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय, सिंगापुर
2008  डॉक्टर ऑफ साइन्स (मानद उपाधि)        अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
2007   डॉक्टर ऑफ साइन्स एण्ड टेक्नोलॉजी की मानद उपाधि     कार्नेगी मेलन विश्वविद्यालय
2007     किंग चार्ल्स II मेडल                               रॉयल सोसायटी, यूनाइटेड किंगडम
2007     डॉक्टर ऑफ साइन्स की मानद उपाधि           वूल्वरहैंप्टन विश्वविद्यालय, यूनाईटेड किंगडम
2000     रामानुजन पुरस्कार                               अल्वार्स शोध संस्थान, चेन्नई
1998      वीर सावरकर पुरस्कार                          भारत सरकार
1997     इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार          भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
1997 भारत रत्न                                                भारत सरकार
1994 विशिष्ट शोधार्थी                                        इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायरेक्टर्स (इण्डिया)
1990 पद्म विभूषण                                        भारत सरकार
1981 पद्म भूषण                                                भारत सरकार


महाराणा प्रताप की जीवनी

नाम- महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया 
पिता - महाराणा उदय सिंह सिसोदिया 
माता - महाराणी जयवंता  बाई 
पत्नि - महाराणी अजब्दे पंवार
 संतान - अमर सिह प्रथम, भगवान दास 
जन्म - 9 मई  1540

राणा प्रताप का बचपन 

राजस्थान के मेवाड के कुम्भलगढ मे 9 मई1940
को‌ महाराणा उदय सिह व महाराणी जयवंता बाई के ज्येष्ठ पुत्र राणा प्रताप का जन्म हुआ , राणा प्रताप का बचपन वहॉ की भील जनजाति के लोगो के मध्य बिता था उन्होने राणा प्रताप को बचपन मे किका नाम दिया जिसका शाब्दिक अर्थ बेटा होता है। मेवाड़ के राज्यचिन्ह में आज भी एक तरफ राजपुत व दूसरी तरफ भील की तस्वीर बनी है।

राणा प्रताप का राज्याभिषेक व प्रगाढ स्वतंत्रता प्रेम -

 महाराणा उदय सिह की मृत्यु के बाद 28 फरवरी ‌1572 ई को प्रताप गोगुन्दा मे राज्याभिषेक होने के बाद मेवाड का सिंहासन गृहण किया , महाराणा प्रताप ने सिंहासन ग्रहण करते ही यह  प्रतिज्ञा‌ लि कि जब तक वह चितोड को‌ मुगलो से आजाद ना  करा ले तब तक वह राजमहलो का सुख नहीं भोगेंगे  और राणा प्रताप ने आजीवन अपनी इस प्रतिज्ञा  का पालन भी किया।
सर्वप्रथम महाराणा प्रताप ने अपनी राजधानी को गोगन्दा से कुम्भलगढ स्थानान्तरित कर मेवाड के सरदारो और  वनवासी भीलों की सहायता से मुगलो के खिलाफ एक
शक्तिशाली सेना खड़ी कर ली। मेवाड को संगठित होता देख अंकबर ने महाराणा प्रताप से आधिनता स्वीकार करवा ने हेतु अपने चार दुत भेजे ,
1572 ई  में जलाल खॉ
जुन 1573ई मे मान सिह को
सितम्बर 1531ई. में भगवान दास को
दिसम्बर 1573ई‍‌ मे टोडरमल को परन्तु महाराणा प्रताप ने अकबर के सभी प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया |


हल्दीघाटी का  युद्ध 


यह युद्ध मेवाड़ के हल्दीघाटी नामक स्थान पर 21 जून को महाराणा प्रताप और अबबर के सेनापति मान सिंह के मध्य हुआ था इस युद्ध मे अकबर की आशिंक जित हुई परन्तु फिर भी महाराणा प्रताप ने अकबर की अधिनता स्वीकार नहीं की, इस युद्ध  में 20,000 मेवाडी़ सैनिक 80,000 मुगल सेना थी।
इस युद्ध  को अनेक इतिहास कारो ने अलग - अलग नाम दिये ,
कर्नल जेम्स टॉड - मेवाड़ की थर्मोपॉली
बंदायुनी - गोगुन्दा का युद्ध
अबुल फजल - खमनौर का  युद्ध
हल्दीघाटी के युद्ध ने मुगलो के अजय होने के भ्रम को तोड दिया , अब महाराणा प्रताप वीर  शिरोमणी के रूप मे स्थापित हो गए|

 स्वामी भक्त चेतक तथा रामप्रसाद 

महराणा प्रताप के स्वामीभक्त घोडे़ का नाम चेतक था युद्ध भुमि मे महाराणा  प्रताप को दुशमनों से घिरा देख , चेतक ने महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुचाने के लिए धायल अवस्था मे भी 5 km तक दौडा फिर 26 फिट चौडा  एक बरसाती नाले को  कुदकर पार कर लिया और महाराणा प्रताप को एक सुरक्षित स्थान पर पहुँचा कर बलिचा नामक स्थान पर अपने प्राण त्याग दिये जहॉ चेतक की समाधि आज भी स्थित है।

      इसी लिए मेवाड़ मे चेतक पर एक कविता प्रसिध्द हे |

                                  चेतक की वीरता 

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली लेकर सवार उड जाता थाराणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक मुड जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर राणाप्रताप का कोड़ा था वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर वह आसमान का घोड़ा था 

(इस कविता को श्याम पाण्डेय ने लिखा)
 महराणा प्रताप‌ के घोड़े की तरह ही उनका हाथी रामप्रसाद भी बहुत स्वामिभक्त था  जिसने हल्दीघाटी के युद्ध मे अकबर के कई  हाथीयो को  मार गिराया था अतः मुगलो ने इसे अपनी सेना मे भर्ति करने हेतु बंदी बनाकर ले गये पर राम प्रसाद ने भुखे रहकर अपने प्राण त्याग दिये|


कुम्भलगढ व दिवेर का युद्ध

 हल्दीघाटी‌ के युद्ध‌‌ के पश्चातअकबर ने महाराणा प्रताप की राजधानी कुम्भलगढ को   जितने के लिए 1577 ई मे शहबाज खान  केे  नेतृत्व मे अपनी विशाल सेना लगातार चार बार भेजी पर हर बार मुगलो  को हार का‌‌ सामना करना  पड़ा परन्तु 5वी बार आर्थिक स्थिति खराब हो जाने के कारण मुगलो ने‌ कुम्भलगढ पर कबजा कर लिया
 भामाशाह द्वारा आर्थिक‌ सहायता प्रदान करने के बाद महाराणा प्रताप ने पुनः अपनी सेना खडी कर 580 ई. मे पुनः  कुम्भलगढ को जीतकर अपनी राजधानी बना लिया।
1582 मे मुगलो व महाराजा प्रताप‌ के मध्य पुनः  दिवेर का‌  युद्ध हुआ इस युद्ध  मे भी महाराणा प्रताप की जीत हुई।

महाराणा प्रताप की अन्तिम समय 

महाराणा प्रताप की मृत्यू  19 जनवरी 1597 को चावण्ड मे हई थी तथा अतिम संस्कार बाण्डोली नामक स्थान पर किया गया जहाँ उनके स्मारक के रूप में 8 खम्भो की छतरी  बनाई गई है।  तथा महाराणा प्रताप ने अपनी मृत्यु से पर्व अपने प्रण अनुसार चितोडगढ को छोडकर सम्पुर्ण मेवाड़ पर पुनः अपना आधिकार कर लिया था।
 चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को।
राणा प्रताप सिर काट काट, करता था सफल जवानी को॥
कलकल बहती थी रणगंगा, अरिदल को डूब नहाने को।

तलवार वीर की नाव बनी, चटपट उस पार लगाने को॥

माँ पर शायरी


हम जब इस दुनिया में आते हैं तो मां की बदौलत ही आते है



1
हर गली, हर शहर, हर देश-विदेश देखा,
लेकिन मां AAP जैसा प्यार कहीं नहीं देखा

2
रब से करू दुआ बार-बार
हर जन्म मिले मुझे माँ का प्यार
खुदा कबूल करे मेरी MANAT
फिर से देना मुझे माँ के आंचल की JANNAT

3
ठोकर न मार मुझे पत्थर नहीं हूँ मैं,
हैरत से न देख मुझे मंज़र नहीं हूँ मैं,
तेरी नज़रों में मेरी क़दर कुछ भी नहीं,
मेरी माँ से पूछ उसके लिए क्या नहीं हूँ मैं

4
सब कुछ मिल जाता है दुनिया में मगर,
याद रखना कि माँ-बाप नहीं मिलते,
मुरझा कर जो गिर जाये एक बार डाली से,
ये ऐसे फूल हैं जो फिर नहीं खिलते

5
वो तो असर है मां की दुआओं में,
वरना इतना सुकून कहां था इन हवाओं में

6
सवरने की कहाँ उसे फुर्सत होती है,
माँ फिर भी बहुत खूबसूरत होती है

7
ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं,
जहां में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं

8
हालातों के आगे जब साथ ना जुबां होती है,
पहचान लेती है खामोशी में हर दर्द,
वो सिर्फ "माँ" होती है


9
हालात बुरे थे मगर अमीर बनाकर रखती थी,
हम गरीब थे, ये बस हमारी माँ जानती थी

10
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

11
मेरी खातिर तेरा रोटी पकाना याद आता है,
अपने हाथो को चूल्हे में जलाना याद आता है।
वो डांट-डांट कर खाना खिलाना याद आता है,
मेरे वास्ते तेरा पैसा बचाना याद आता है